हम अपने आस-पास देखते है कि कुछ बच्चों के पास या तो पहनने को कपड़ा नहीं होता या फिर जो कपड़े वे पहने हुए होते है। उनकी स्थिति अत्यंत ही दयनीय होती है। शिक्षादान, अन्नदान की भांति वस्त्रदान भी अत्यंत पूर्ण्य का कार्य होता है। हमारे घरों में कई बार हम ऐसे वस्त्रों को भी त्याग देते है। जो कि उन बच्चों के लिए नये के समान ही होगें, जिनके पास पहनने को कपड़े तक नहीं होते। हमें और आपको इस बारे में सोचना होगा कि जिन वस्त्रों को हम पहनना छोड़ करके उन्हें कूड़ेदान मेें डाल देते है। वे कपड़े किसी जरूरतमंद को दे दे। अगर आप नये वस्त्रों का दान करते है। तो यह और भी पूर्ण्य का कार्य होगा।
वस्त्रदान का महत्व-
वस्त्रदान का महत्व शिक्षादान, अन्नदान की भांति ही है। हमारे धर्म शाष्त्रों में भी इसका उल्लेख मिलता है। कि हमें जरूरतमंद को वस्त्रदान करने चाहिए। पहले के समय में तो बिना वस्त्रदान के कोई भी शुभ कार्य पूरा नहीं होता था। भगवत गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने दान को मन सुख और शांति देने वाला कार्य बताया है। कहते है कि एक हाथ से दिया गया दान हजारों हाथों से लौटकर वापस आता है।
दान के विषय में एक संस्कृत का श्लोक बहुत प्रचलित है-
हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् । श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम् ॥
इसलिए वस्त्र चाहे नये हो या पुराने उनका पवित्र मन से यदि दान दिया जाय तो वह अवश्य ही कल्याणकारी होता है। आपको उसका फल अवश्य मिलता है।
तो आइये वस्त्रदान की मुहिम से खुद जुड़े एवं दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।