हमारे दुखों का कारण हम खुद ही है। क्योंकि हम समझ नहीं पातें है। कि हमे वास्तविक रूप से क्या चाहिए। और हम किस ओर भागते चले जा रहे है। आपके भीतर जो कुछ भी हो रहा है। हम उसे ही नहीं समझ पाते हैं।
हमारे सुख-दुःख कारण एवं उसका निवारण हमारे अंदर ही छिपा है। हमें बस उसे पहचानने की आवश्यकता है।
जिस प्रकार जब आप किसी को कुछ दान करते है। तो आपको एक मानसिक रूप से ऐसे सुख की अनुभूति होती है।
जिसकी कल्पना कर पाना मुश्किल है।

हम मां गंगा से तो अपने पापों का प्रायश्चित कर लेते है। किंतु क्या हमनें अपनी जिंदगी में कभी किसी असहाय की सहायता की है। जीवन पर्यंन्त केवल अपने ही बारें में सोचना भी एक प्रकार का पाप होता है। हमारे आदरणीय गुरूजी श्री सौरभ जी महराज ने मनुष्यों के दुःखों का कारण का वर्षों से अध्ययन किया है। उनका अध्यात्म ज्ञान मनुष्य की सोच से भी परे है। उन्होंने अपने अनुयायियों का जीवन अपनी दिव्य सोंच से पूरी तरह से बदल दिया है।
आदरणीय गुरूजी के सानिध्य में भाग्य मंदिर परिवार वर्षो से निश्वार्थ भाव से लोगों की सेवा कर रहा है। आप भी अपना सहयोग देकर पूण्य के भागी बनें।